शनिवार, 18 अप्रैल 2020

बीमारी लाएं अमीर और भुगतें कौन? गरीब!



पूरा विश्व आज चीन से फ़ैली एक बीमारी की चपेट में चुका है। बीमारी है कोविड19 (CORONA VIRUS DISEASE 19). WHO ने इस बीमारी को महामारी घोषित कर दिया है। तथाकथित रूप से जानवरों के भक्षण से इंसानों में फ़ैली यह बीमारी आज विकराल रूप ले चुकी है। एक तरफ़ जहां हज़ारों लोगों की जानें जा चुकी हैं तो वहीं दूसरी ओर करोड़ों लोग इसके शिकार होने के मुहाने पर खड़े हैं।

क्या है यह बीमारी और क्यों है खतरनाक?
कोविड19 को बीमारी से ज़्यादा महामारी कहना उचित होगा। यह एक भयंकर संक्रामक बीमारी है, जो संक्रमित व्यक्ति से सम्पर्क में आए लोगों में बड़ी तेज़ी से फैलती है। इसके संक्रमण की वजह से आज पूरा विश्व थम सा गया है। सरकारी/निजी संस्थाएं लगभग सभी बन्द हैं और इनके लगभग सभी कर्मचारी घर से ही काम कर रहे हैं। यातायात व्यवस्था पूरी तरह से ठप्प पड़ी है, बाज़ार बन्द हैं, अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। इतना सब कुछ किस वजह से? कोविड19 पॉजिटिव पाए गए व्यक्तियों के अन्य लोगों के सम्पर्क में आने से।




कैसे पूरे विश्व में फ़ैल गई यह बीमारी?
कोरोना वायरस अपनी तरह का एक नया वाइरस है। नया होने की वजह से इसकी कोई वैक्सीन की खोज नहीं की जा सकी है, हालांकि विश्व भर के वैज्ञानिक इसकी खोज में दिन-रात जुटे हैं परंतु अभी तक उन्हें सफ़लता हासिल नहीं हुई है। यह वायरस संक्रमित व्यक्ति से अन्य व्यक्ति में जाने के बाद 1 से 14 दिन के भीतर अपना रंग दिखाना शुरू करता है। जिस वजह से इसके लक्षण (सुखी खांसी, बुखार, सीने में जकड़न की वजह से सांस लेने में तकलीफ़, बहते नाक आदि इस बीमारी के शुरुआती लक्षण हैं) पाए जाने पर लोगों को कम से कम 14 दिन तक औरों से अलग Quarantine में रखा जा रहा है। 

इसकी शुरुआत दिसम्बर 2019 में चीन से हुई है। क्रिसमस की   छुट्टियां होने की वजह से विदेशों में काम करने वाले लोग अपने-अपने देश लौटे थे और छुट्टियां ख़त्म होने के बाद वापस अपने कार्यक्षेत्र में लौट आए। इस बीच में सैकड़ों लोग चीनी लोगों से सम्पर्क में आए जो कि अपने साथ कोरोना वायरस भी चीन से साथ ले आए थे।
भारत के भी अनेक लोग अनेक विदेश यात्राओं में थे और वो भी संक्रमित लोगों के सम्पर्क में आए थे। जिसके बाद वे भी देश लौट आए और कोरोना वायरस भारत में भी पैर पसारने लगा। शुरुआती दौर में इस बीमारी को भांपने में विश्वभर के लोगों से, डॉक्टरों से गलती हुई है, जिसका परिणाम आज सबके सामने है।

गुनाह किसका और भुगत कौन रहा है?
भारत में यह बीमारी विदेश की यात्रा कर के आए लोगों के माध्यम से फैली है और ज़ाहिर सी बात है कि विदेश यात्रा गरीब वर्ग तो करता नहीं है। इसे ये समझा जाए कि अमीरों ने इसे जानबूझ कर फैलाया है। विदेशी यात्रा कर के आये लोग इस बीमारी के फैलने के माध्यम ज़रूर हैं परन्तु आज सबसे ज्यादा इस महामारी के फैलने से प्रभावित कोई वर्ग है तो वह गरीब वर्ग है। लॉकडाउन होने की स्थिति में सबसे ज़्यादा प्रभावित रोज़ कमाने, रोज़ खाने वाले और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोग हुए हैं। जिसमें भी बहुतायत लोग काम की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य गए पलायन किये हुए लोग हैं। बस/ट्रेन/काम सब बन्द होने की वजह से सबसे ज्यादस चोट इन्हें पहुंची है और अब ये सभी पैदल ही अपने घर की ओर निकल चुके हैं।ये लोग सैकड़ों की तादाद में पैदल ही अपने घर को निकल चुके हैं।



यह स्थिति अमूमन सभी राज्य की है पर सबसे ज्यादा गम्भीर स्थिति राजधानी दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों की है। सोशल मीडिया के माध्यम से रही इनके फोटोज़, इनके वीडियो अंदर तक झकझोर कर रख देने वाले हैं। सर में सामान का गट्ठा और एक हाथ में बच्चे को पाए ये लोग 700-800 किलोमीटर पैदल ही जाने को निकल चुके हैं। यह जानते हुए कि रास्ते में ना रुकने का ठिकाना है और ना ही खाना मिलने की स्युरिटी। बस एक उम्मीद है कि घर वापस पहुंच गए तो कम से कम 2 जून की रोटी तो नसीब हो जाएगी।

यह बीमारी या कहें महामारी, जाने-अनजाने में जो भी हो पर अमीरों के द्वारा ही फैलाई गई है। ऐसा नहीं है कि विदेश यात्रा कर के आया हर भारतीय दोषी है, सरकार के अनेक बार कहने के बावजूद भी विदेश की यात्रा कर के आए सैकड़ों लोग सामने नहीं रहे हैं, इतना ही नहीं सरकारी निर्देशों के बाद भी कई ऐसे हैं जो अभी भी अपनी पहचान छुपाए हुए हैं, वे लोग हैं दोषी। ऐसे तथाकथित "शिक्षिक वर्ग" के गैर-जिम्मेदाराना रवैये की वजह से आज गरीब, मजदूर वर्ग के पास खाने के लाले पड़ गए हैं। हालांकि सरकारें लगातार मदद कर रही हैं परंतु सरकार द्वारा सभी तक पहुंच पाना भी बहुत बड़ी चुनौती है।

आज विश्व की जो स्थिति है वह सबसे सटीक तरीके से ऐसे समझा जा सकता है कि,
 "करे कोई और भरे कोई"



अभी की स्थिति में लोगों के मन में सैंकड़ों सवाल हैं,लॉकडाउन कब तक चलेगा? जन-जीवन वापस पटरी में कब लौटेगा? व्यापार का क्या होगा? पर ठोस जवाब के लिए शायद इंतज़ार अभी और करना होगा। सोचनीय तो यह भी है कि, इस स्थिति में गरीबों का, मजदूरों का क्या दोष है? क्या यह महामारी इनकी वजह से जन्मी है, जो इतना कुछ झेलना पड़ रहा है इन्हें? क्या इसके फैलने के पीछे के दोषी चंद रुपए कमाने वाले ये मजदूर हैं? क्या इनका दोष ये है कि नौकरी की तलाश में ये लोग अपना घर छोड़ दूसरे राज्यों में मजदूरी कर रहे हैं?

शायद, नहीं।

वैसे राज्य हो या केंद्र, सरकारों के सामने भी चुनौतियां ढेर सारी हैं। ज़रूरत है प्रथमिकताओं के आधार पर कार्य करने की। पर कुछ एक सरकारों को छोड़ दें तो बाकी सरकारें अभी तक तो प्रथमिकताएँ तय करने में पास होती नज़र नहीं रही हैं। जब सरकार विदेश में फंसे भारतीयों को वापस लाने, बिना देरी किये विशेष विमान की व्यवस्था कर सकती है तो देश के विभिन्न कोनों में फंसे गरीब, मजदूरों के लिए रहने-खाने की व्यवस्था करने में देरी क्यों? क्या इन गरीब, मजदूरों की याद सरकरों को केवल चुनाव के दौरान ही आती है? और सबसे महत्वपूर्ण कि, जब वैश्विक स्तर पर यह त्रासदी महीनों से चल रही थी तो हमारी सरकारों ने पहले हो ठोस कदम क्यों नहीं उठाए? शायद, जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग पहले जाग जाते तो स्थिति निःसन्देह आज जो है उससे बेहतर ही होती।

पर अब वक़्त साथ मिलकर इस चुनौती से लड़ने का है। ताकि हम एक बार फ़िर मजबूती के साथ खड़े हो सकें और साथ मिलकर दौड़ सकें। ईश्वर आप सभी की रक्षा करें। अपनी एवं अपनों की सुरक्षा हेतु कृपया आप सभी घर से बाहर निकलें।

हारेगा कोरोना, जीतेगा भारत।

*हर्ष दुबे*
स्वतन्त्र लेखक एवं पूर्व छात्र
भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली।