मंगलवार, 29 अगस्त 2017

स्वयम्भू बाबा, नेता और भीड़

स्वयम्भू बाबा और मौजूदा नेता दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जानते हैं कैसे?

दोनों को चाहिए:
1. सामने झुकने वाले लोग
2. ताली पीटने वाली, वाहवाही करने वाली जनता
3. नाम/इज्जत/शोहरत
4. VVIP ट्रीटमेंट

दोनों की ज़रूरत:
1. भीड़
2. पैसा

दोनों में समानता:
1. दोनों झूठे होते हैं।
2. दोनों को बखूबी पता है, जनता कितनी बवेकूफ है।

अपनी इन चाहतों, इच्छाओं, जरूरतों को पूरा करने ये अक्सर मंच साझा करते हैं या एक दूसरे के कार्यक्रमों में जाकर उपस्थिति दर्ज करा कर एक दूसरे की वाहवाही करते हैं। इनमें एक गजब की आपसी समझ, गजब की तारतम्यता रहती है। समाजसुधारक बनते हैं और समाज को सबसे अधिक नुकसान भी यही करते हैं।
पिछले कुछ दशकों से ये एक शँखलित समूह की तरह कार्य कर रहे हैं। ये जानते हैं, इसमें नुकसान कम और फायदा ज्यादा है।

तो आदरणीय महानुभावों इनका चक्कर छोड़िए ना बाबा की बातों में आइये ना नेता की। इनके दोनों हाथों में लड्डू है पर वो लड्डू खरीदा आपके पैसे से गया है। दान-दक्षिणा करना है तो किसी जरूरतमन्द को पढा दीजिये और जरूरतमन्द आपके इर्द-गिर्द ही हैं, आसानी से मिल जाएंगे उतनी आसानी से बाबा-नेता नहीं मिलेंगे।

आप स्वयं ठगने तैयार बैठे हैं, इसलिए ठगाए जा रहे हैं। ये लोग भी एक प्रकार से चिटफंड वाले ही हैं, वो पैसा दुगना-तिगुना करने की बातें करते हैं, ये सुख, शांति, समृद्धि लाने की और आपको काट के निकल जाते हैं।  'भक्ति' की पट्टी हटाइये और विवेक से काम लीजिये।

" धूल चेहरे पर है, आप आईने को दोश दे रहे हैं "

अरे जो खुद दूसरों पर आश्रित हो वो आपका जीवन क्या बदलेगा, आपका जीवन, आपकी आदतें केवल आप बदल सकते हैं। उठिए वरना फिर कोई चंद्रास्वामी, कोई आसाराम, कोई रामपाल, कोई हरी चटनी वाला निर्मल, या सच्चा सौदा करने वाला झूठा, फरेबी आएगा और ठग के चला जाएगा।

टिप: अपवाद हर जगह, हर क्षेत्र में होते हैं। कुछ वाकई तपस्वी, सन्त, महात्मा हैं और कुछ वाकई में जनता के प्रतिनिधि होते हैं। हां और कुछ जागरूक जनता भी है जो ठगे हुओ पर हंसती है। उन अपवाद केसेस को मेरा प्रणाम।

हर्ष दुबे