रविवार, 13 दिसंबर 2015

“चार दिन की चांदनी फिर अंधियारी रात”

हमारे छत्तीसगढ़ राज्य के सरकारी महकमे को इस वाक्य को अपने प्रचार वाक्य के रूप में ग्रहण कर लेना चाहिए, क्यूंकि यहाँ जो भी निर्णय होते हैं उनकी वैद्यता 4 दिन से ज्यादा की नहीं रहती. उदाहरण स्वरुप दुपहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट अनिवार्यता का नियम. पुलिस मुख्यालय ने एक बार फिर दुपहिया वाहन चालकों द्वारा हेलमेट नहीं लगाने पर कार्यवाही करने के आदेश/निर्देश दिए हैं. इस प्रकार की मुहीम पहले बार लागू की गई है ऐसा नहीं है इसके पहले भी पचीसों बार हेलमेट अनिवार्यता के लिए मुहीम छेड़ी गई है पर किसी भी बार इसकी अवधि 4 दिन से ज्यादा की नहीं रहती. कारण, बिना सोचे समझे लिए गए निर्णय.
रायपुर जैसे शहर में जहाँ पुरानी बस्ती, रामसागरपारा, MG रोड, मालवीया रोड, गुढ़ियारी, स्टेशन रोड, सादर बाजार, गोल बाजार, जैसे इलाके हैं. इन इलाकों के सड़कों की चौड़ाई महज़ 40-50 फ़ीट होगी, जिनमें चाह कर भी इंसान 30 की.मी. प्रति घंटे से ज्यादा की गति में वाहन चला नहीं सकता वहां हेलमेट पहन कर गाड़ी चलाने कहना क्या समझदारी है? यहाँ से आप किसी भी पहर में गुज़रिये बिना जाम में फंसे इन रास्तों से निकल पाना असंभव है. इस प्रकार के आदेश थोपने वाले अधिकारियों से मेरा आग्रह है कि जिन मार्गों का मैंने ज़िक्र किया है उन मार्गों पर कुछ दिन हेलमेट के साथ और कुछ दिन बिना हेलमेट के दुपहिया चलाते हुए निकलें शायद तब जा कर उनको ये बातें समझ आएंगी जिस तरफ मैं उनका ध्यान आकर्षित करना चाह रहा हूँ. निःसंदेह हेलमेट सुरक्षा की दृष्टी से अनिवार्य होना चाहिए पर शहर के बाहरी इलाकों में ना की शहर के तंग सड़कों के लिए. सड़क किनारे अवैध रूप से गुमटियां लगाने वाले, ठेला लगाने वाले, दूकान के बहार अवैध रूप से सामान बिछाने वालों पर कार्यवाही करना छोड़ इस प्रकार के बेतुके निर्देश निकालने में कोई समझदारी नहीं है. 
ज़रूरत है पहले आवागमन के मार्गों से इन अवैध कब्जाधारियों को हटाने की, तब जाकर मार्ग वाहन चलाने योग्य बनेंगे और अगर फिर हेलमेट अनिवार्य किया जाए तो निर्देशों का पालन भी होगा.  अन्यथा 4 दिन पुलिस चौक-चौराहों पर नज़र आएगी तब तक लोग गली-मोहल्लों से गुज़रते हुए बच निकलेंगे और 4 दिन बाद जैसे थे की स्थिति फिर लौट आएगी.

शहर के भीतर अगर सड़क हादसे होते हैं तो उनकी मुख्य वजह पालकों द्वारा 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को गाड़ी थमा देना, ऑटो चालकों पर नियंत्रण न होना, अव्यवस्थित ट्रैफिक व्यवस्था है. स्कूली बच्चों को गाड़ी न चलाने के निर्देश देना, जागरूक करने की मुहीम चलाना भी केवल साल में एक बार जून-जुलाई के महीने में किया जाता है. गौरतलब है की इस मुहीम की भी अवधि मात्र 4 दिनों की ही होती है. वैसे  स्कूली बच्चों को गाड़ी न देने, सड़क हादसों के प्रति जागरूकता फ़ैलाने में जितनी जिम्मेदारी पुलिस की है उतनी ही जिम्मेदारी पालकों की भी है.
केवल हेलमेट अनिवार्यता ही नहीं आप पिछले अन्य आदेशों को उठा कर देख लीजिये, किसी भी आदेश/मुहीम की अवधि 4 दिन से ज्यादा की नहीं रही है. उदाहरण स्वरुप राजधानी रायपुर के गुढ़यारी स्थित व्यापारियों के व्यवस्थापन का ही मुद्दा ले लीजिये. गुढ़यारी का बाजार राज्य का सबसे बड़ा तेल, अनाज का थोक बाजार है और यहाँ के व्यापारियों को डुमरतराई में व्यवस्थापन हेतु सरकार द्वारा दुकान आबंटित कर दिए गए हैं पर 90% व्यापारी अभी भी गुढ़यारी से ही अपना कारोबार चला रहे हैं और प्रशासन इन कारोबारियों को व्यवस्थापित करने में पूर्ण रूप से असमर्थ है. 2 माह पूर्व इन कारोबारियों को व्यवस्थापित करने मुहीम चलाने का निर्णय लिया गया और अन्य मुहिमों की तरह इस मुहीम ने भी 4 दिन बाद घुटने टेक दिए.
इसी प्रकार रायपुर के नया बस स्टैंड स्थित सरकारी जमीन को खाली करवाने में भी अधिकारियों के पसीने छूट गए हैं. सालों से पंडरी नया बस स्टैंड में एक सरकारी जमीन पर एक निजी बस ट्रेवल्स के मालिक ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है, जिसे खाली करवाने अधिकारी कई बार अपने अमले के साथ गए हैं परन्तु हर बार उन्हें नाकामी ही हाथ आई और अभी भी वह जमीन ट्रेवल्स मालिक के कब्जे में है.

ऐसे बहुतेरे उदाहरण हैं जब आदेश/निर्देश दिए गए पर परिणाम कुछ ना निकला, इसलिए छत्तीसगढ़ के सरकारी महकमे को अपने कार्यशैली की समीक्षा करने की आवश्यकता है. उन्हें बैठ कर विचार करने की ज़रूरत है कि आखिर किसलिए उनके किसी भी मुहीम का कोई सार्थक परिणाम नहीं आता.

हर्ष दुबे
भूतपूर्व छात्र, भारतीय जनसंचार संस्थान,
नई दिल्ली

गुरुवार, 26 नवंबर 2015

मनुष्य की आड़ में जन्म लेते दरिंदे


 26/11 एक ऐसी तारीख है जो हम सभी भारतियों को और जिन विदेशियों ने अपनों को गंवाया उन्हें जीवनपर्यन्त याद रहेगी. आज ही के दिन 7 वर्ष पहले मनुष्य ने साबित कर दिया की संसार में मनुष्य के वेश में दरिंदे/हैवान भी रहते हैं.


हम मनुष्य दम्भ भरते हैं की हमने पुण्य किया होगा जो 84000 योनियों में से हमने मनुष्य योनि में जन्म लिया. पर ईश्वर भी इस संसार में जन्म लिए मनुष्य रुपी दरिंदे/हैवान को देख कर दुखी, हताश, निराश होता होगा. ईश्वर के मन में भी ख्याल आते होंगे कि 84000 योनियों में जिस योनि को मैं सर्वश्रेष्ठ मानता हूँ उसमें आज ऐसे दरिंदे भी शामिल हैं. ऐसे लोगों को देख कर स्वयं प्राणदाता कि आँखें झुक जाती होंगी. जब जान देना ऊपर वाले का अधिकार है तो जान लेने का भी अधिकार उसी का है, हम मनुष्य होते कौन हैं ये निर्णय लेने वाले कि कौन जियेगा और कौन नहीं? पर यह सब बातें उन्हें समझ आने से रही, जो निहत्थे, बेगुनाह, मासूमों को मारने तैयार हो जाते हैं.

अभी भी दुनिया के किसी कोने में कोई हफ़ीज़ सईद होगा जो किसी कसाब को दीन कि रक्षा करने का पाठ पढ़ा रहा होगा, कोई बघदादि भी होगा कोई तालिबानी भी होगा. मुझे तो आश्चर्य होता है वे कैसे बेग़ैरत लोग होते होंगे जिनके दिमाग में ऐसे भरा जाता होगा और उनसे ज्यादा वे लोग जो इसकी अगुवाई करते हैं. इंसान आज वाकई में निर्दयी हो चुका है, ना उसे किसी का खौफ है न मलाल. 7 वर्ष पहले मुंबई में 20-22 साल के 5-6 लड़कों ने बंदूक की नोख पर सैकड़ों बेगुनाहों, मासूमों को मौत कि नींद सुला कर यह दिखा भी दिया.
क्या महिला, क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या जवान जिस निर्ममता से उन्होंने उस घटना को अंजाम दिया, उसमें सोचनीय यह है की कोई इंसान किसी दूसरे इंसान को इस प्रकार का प्रशिक्षण कैसे दे सकता है. इन हत्यारों का ना कोई धर्म होता है और ना कोई ईमान, ये केवल अपना व्यक्तिगत स्वार्थ साधने के लिए लोगों को बरगलाते हैं. आज पूरे विश्व में इसी प्रकार का वातावरण निर्मति हो चुका है, मानवता तो केवल भाषण/लेखन में प्रयोग होने वाले शब्दों तक सिमित हो चुकी है.
कहा जाता है की 95% दिमाग वालों की अपेक्षा 5% बद्दिमग समाज के लिए ज्यादा हानिकारक हैं, आज पूरा विश्व इसी विपदा से जूझ रहा है, इन्हीं बद्दिमग लोगों की वजह से कलह झेल रहा है जिसके वजह से हर रोज सैकड़ों लोग अपनी जान गवां रहे हैं. वे 5% ही आज पूरे विश्व के लिए चुनौती बनकर खड़े हैं.

बंदूक, हथियारों से बात करने वाले ये लोग ना जाने कब शांत होंगे, किसके कहने से शांत होंगे.

मेरी बस इतनी सी प्रार्थना है : "रघुपति राघव राजा राम, 'उनको' सन्मति दे भगवान".

26/11/2008 को अपनी जान गंवाने वाले मासूमों को, बेगुनाहों को, जवानों को, जाबाज़ों को श्र्द्धांजलि.

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

जिला प्रशासन को खुला पत्र

सेवा में,
श्रीमान् जिलाधीश महोदय,
रायपुर, छत्तीसगढ़
विषय :-  आस्था की आड़ में हो रही हुल्लड़बाजी पर कड़े कदम उठाने बाबत~A
महोदय,
                 पूरे शहर में त्योहार का वातावरण देखा जा सकता है। 10 दिनों के भीतर फिर से हर चौक-चौराहे, गली-मोहल्ले में पंडाल लगने का दौर शुरू हो चुका है। इस साल तो भक्तों ने अपनी सुविधानुसार गणेशजी को 11, 12 से लेकर 15 दिन तक अपने पास रखा। 'सुविधानुसार' इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि गणेशजी का विसर्जन होने या न होने का सीधा संबंध अब DJ  की उपलब्धता से हो गया है। हमारे शहर में DJ  वालों की संख्या उतनी नहीं है, जितनी संख्या चंदा-चकारी करके गणेशजी को बिठाने वाले पंडालों की है। इसलिए जिसे जब DJ  की बुकिंग मिलती है तब विसर्जन की तैयारी शुरू होती है, भले ही इसमें 2-4 दिन और लग जाएं (क्योंकि पैसा तो उनकी जेब से नहीं जा रहा, वो तो चंदा करके आ ही गया है)।
      पहले गणेशजी 'गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ' और 'एक-दो-तीन-चार, गणपति की जय-जयकार' जैसे नारों के साथ विसर्जित होने जाते थे, पर बदले दौर में आज लोग DJ  वाले बाबू से अपना पसंदीदा गाना बजाने की ख्वाहिश करते हैं, फिर '4 बोतल वोडका, काम मेरा रोज़ का', '4 बज गए लेकिन पार्टी बाकी है' और 'अभी तो पार्टी शुरू हुई है' जैसे नारों, माफ़ कीजिए गानों (नारा तो आप लगा ही नहीं सकते) के साथ 6-8 घंटे शहर के मुख्य मार्गों से उत्पात मचाते हुए नदी के तट तक पहुंचते हैं।
      महोदय, गणेश पर्व मनाने की परंपरा 300 साल से ज्यादा पुरानी है। इस प्रथा की शुरुआत शिवाजी ने 1630-80 में की थी। जैसा हम सब जानते हैं, बदलते समय के साथ बहुत कुछ बदलता है और गणेश बिठाने की प्रथा इससे अछूती नहीं है। 1892-93 में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने अपने अख़बार 'केसरी' में गणेश पर्व को एक ऐसे त्योहार के रूप में मनाने की बात कही, जिसमें हर जाति-धर्म के लोगों की भागीदारी हो, जिससे सामाजिक सौहार्द बना रहे और लोगों का आपस में मेल-जोल बढे़। लेकिन, आज के समय में अधिकांश जगहों पर गणेशजी को विराजमान करने के पीछे 15 दिन की मस्ती-अय्याशी प्रमुख कारण हो गए हैं।
      मैं आपसे अनुरोध करना चाहता हूं कि जिस प्रकार दिवाली के पूर्व फटाका लगाने वालों को एक निश्चित स्थान पर जगह आवंटित कर दी जाती है, उसी प्रकार अगले वर्ष से आप ऐसी व्यवस्था करने का कष्ट करें जिसमें गणपति बिठाने वालों को एक मैदान में जगह दे दी जाए, जहां वो एक व्यवस्थित तरीके से गणेश बिठाएं। इससे लोगों में मेल-जोल भी बढ़ेगा, जिसकी कल्पना कर तिलकजी ने इस प्रथा की शुरुआत की थी। साथ ही, सड़क पर लगने वाले जाम से भी मुक्ति मिलेगी। पंडाल के आस-पास के रहवासी जो 11-12 दिनों तक लाउडस्पीकर की आवाज की वजह से चैन से सो/बैठ नहीं पाते, उन्हें भी सुविधा होगी। गणेश स्थापना की वजह से पुरे  शहर में भारी मात्रा में पुलिस बल को तैनात किया जाता है । उपरोक्त व्यवस्था बनाने से पुलिस विभाग को भी सुविधा होगी।
      मैं आपका ध्यान DJ  से होने वाले ध्वनि प्रदूषण की ओर ले जाना चाहता हूं। महोदय, ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए बनाए गए नियमों के अनुसार शहर को साइलेंट जोन, रेजिडेंशियल जोन, कमर्शियल जोन और इंडस्ट्रियल जोन में बांटा जाता है जिसमें अलग-अलग जगह के लिए निर्धारित डेसिबल से ज्यादा ध्वनि उत्पन्न होने पर उसे प्रदूषण की श्रेणी में रखा जाता है। ऐसे में रात 9 से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर के चलने पर पाबन्दी रहती है।  भक्तगण अपने-अपने पंडालों से लेकर नदी के तट तक बड़े-बड़े बम फोड़ते, पानी पाउच उड़ाते, गन्दगी फैलाते हुए पहुंचे। मुझे बताते हुए बड़ा दुःख हो रहा है कि पिछले दिनों सप्ताह भर चले गणेश विसर्जन के दौरान पूरी-पूरी रात विभिन्न पंडालों के युवक DJ  बजाते हुए, जिसकी आवाज निर्धारित पैमाने से कई गुना ज्यादा थी, मुख्य मार्गों से (जिसमें रिहायशी इलाके भी आते हैं) होते हुए महादेव घाट तक पहुंचे। ये वही लोग हैं जो खुद सडकों में, गली-मोहल्लों में गन्दगी करते हैं और फिर नगर निगम पर सफाई करवाने का आरोप लगाते हैं
      मेरी तरह हजारों शहरवासियों को एक सप्ताह तक चले विसर्जन के दौरान परेशानियों का सामना करना पड़ा। जिस सड़क, जिस बस्ती, जिस मोहल्ले से गुजर जाइए, लोगों को  हर तरफ सड़क जाम का ही सामना करना पड़ा। परेशानी झेलने वालों में बूढ़े, बच्चे, बीमार सभी शामिल हैं। जेहन में सवाल आ रहा था कि शासन-प्रशासन नाम की चीजें यहां मौजूद हैं भी या नहीं। कोई रोकने वाला नहीं, कोई टोकने वाला नहीं। आम जनता में से किसी ने टोकने की हिमाकत भी नहीं की, क्योंकि नशे में धुत्त और DJ  के शोर में नाच रहे लोगों को बोलकर कुछ भी हासिल होने से रहा। अगर उनमें इतनी ही समझ होती तो शायद वो जो कर रहे थे, वो करते ही नहीं। उनके मुंह लग कर केवल बेइज्जती और निराशा ही हाथ आनी है। महोदय अगले हफ्ते से नवरात्री प्रारम्भ होने वाली है, शहरभर में माँ दुर्गा की स्थापना की जाएगी और जगह-जगह रास गरबा का भी आयोजन होगा मुझे लगता है जिस स्थिति से शहरवासियों को 10 दिन पहले गुज़ारना पड़ा अगले हफ्ते से फिर उन्हें उन्ही परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। अतः मेरी आपसे विनती, प्रार्थना, निवेदन है कि दैनिक जीवन की इन समस्याओं पर कुछ ठोस कदम उठाएं ताकि अगले वर्ष से जनता को इन सब फिजूल की परेशानियों से निजात मिले।
      धन्यवाद
प्रतिलिपि
1.  माननीय महापौर महोदय, नगर पालिक निगम रायपुर (छत्तीसगढ़)
2.  श्रीमान आयुक्त  महोदय, नगर पालिक निगम रायपुर (छत्तीसगढ़)
3.  श्रीमान पुलिस अधीक्षक महोदय, रायपुर (छत्तीसगढ़)

                                                                            हर्ष  दुबे                            
दिनांक: 10-10-2015
     भूतपूर्व छात्र भारतीय जनसंचार संस्थान
  (IIMC)
, नई दिल्ली

    Email:- harshdubey.dubey@gmail.com 

गुरुवार, 2 जुलाई 2015

भगवान, अगले जन्म इन्हें VIP ना कीजो !!




अगली बार अगर हवाई यात्रा करें तो किसी केंद्रीय मंत्री या मुख्यमंत्री के साथ करें वैसे उपमुख्यमंत्री भी चलेगा. क्यूंकि उनके साथ जाने में अगर आप टिकट/पासपोर्ट भूल जाते हैं तो भी कोई दिक्कत नहीं. विमान को आपके लिए रोक दिया जाएगा. चौंकिए मत ! सच कह रहा हूँ, अरे भाई आखिर आप  VIP के साथ जा रहे हैं विमान कंपनी आपको सुविधा थोड़ी दे रही है ये तो उसकी जिम्मेदारी है, आपकी लागतदार है वो. आपको ले जाकर वो किसी जन्म  का ऋण चुका रही है.
वहीँ अगर कोई यात्री भड़क कर विमान से उतर जाए और सड़क मार्ग से यात्रा करना चाहे तो सावधान !! तेज रफ़्तार कार से आता कोई अन्य VIP आपको ठोकर मार सकता है, शायद आपको जान भी गँवानी पड़े जैसे आज जयपुर में एक मासूम को गँवानी पड़ी.
पर क्या करें अच्छे दिन हैं ये और आपके सहयोग के बिना ये सपना कहाँ पूरा हो सकता था. अच्छा आप अगर विमान चालक या अन्य सहयोगी दल में से हैं तो VIP से धीमे स्वर में बात करें भले ही उनकी वजह से आपको बाकी यात्रियों से गाली सुननी पड़े अन्यथा आपकी शिकायत गृह मंत्रालय से लेकर उड्डयन मंत्री तक होगी. अगर बार-बार आप उनकी गलती का एहसास कराएंगे और कहेंगे कि उनकी वजह से विमान में देरी हुई तो वो VIP विदेश यात्रा से लौट कर आपके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने की धमकी भी दे सकते हैं. एक बात की गारंटी ज़रूर है कि यात्रियों में अगर कोई 'भक्त' हुआ तो गाली नहीं देगा क्यूंकि परम आदरणीय नरेंद्र मोदी जी ने सभी 'भक्तों' को गाली देने से मना किया है और सब कितने आज्ञाकारी हैं आप तो जानते ही हैं.
वैसे इसे पढ़ने के बाद आपको या तो मुझपर गुस्सा आएगा या #VIPCULTURE से जो परिस्थितियां निर्मित हुई हैं उस पर गुस्सा आएगा. तो कुछ नहीं, केवल एक उपाय है योग करिये और शांत रहिये. वैसे भी मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोये बैठी एक महिला भक्त ने कहा है "शांति शांति शांति" का उच्चारण करने से इंद्र देव खुश हो जाते हैं और परिणाम स्वरूप बारिश होती है, अच्छा है इसी बहाने हमारे किसान भाइयों को कुछ राहत मिल जाएगी.
"शांति शांति शांति"

गुरुवार, 18 जून 2015

खतरे में सुषमा का 'स्वराज' ???

वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो  मुमकिन, उसे एक  खूबसूरत  मोड़  देकर  छोड़ना ही अच्छा  ये लाइनें 2011 में बोफोर्स कांड के आरोपी क्वात्रोची पर फैसला सुनाते वक़्त मजिस्ट्रेट विनोद यादव द्वारा कही गई थीं। क्वात्रोची को बरी कर दिया गया था। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इसे शर्म की बात बताई थी कि जिस इंसान को पकड़ने में देश के 205 करोड़ रूपए खर्च हो गए, वह अंत में बरी हो कर निकल गया।
सीबीआई के पूर्व निदेशक विजय शंकर ने कहा था कि इसमें उनके उत्तरवर्ती सीबीआई निदेशकों और वकील अरुण जेटली की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, जिन्होंने मामले में ढिलाई बरती और मामले को कमजोर किया। नतीजन क्वात्रोची को 2007 में अर्जेंटीना से भारत नहीं लाया जा सका और अब बीजेपी के वर्तमान अध्यक्ष अमित शाह ललित मोदी विवाद में सुषमा स्वराज का पक्ष रखने के लिए क्वात्रोची मामले को ही बेशर्मी के साथ कुतर्क के तौर पर घसीट रहे हैं।

शाह भूल गए कि क्वात्रोची मामले में जितनी जिम्मेदारी सीबीआई की थी, उतने ही जिम्मेदार तत्कालीन वकील और वर्तमान वित्त मंत्री अरुण जेटली भी थे। खैर, जब हमारे प्रधानमंत्री स्वयं गलत तथ्यों के पैरोकार दिखाते हैं तो उनकी संगति का कुछ तो असर माननीय अध्यक्ष महोदय पर भी पड़ेगा।



ललित मोदी की बात करें तो यह IPL में वित्तीय अनियमितताओं का आरोपी हैं और एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ED) की गिरफ्त में आने के डर (जिसे ललित बेबुनियाद बताते हैं) से भारत से बाहर लंदन और दूसरे शहरों में गुजारा कर रहे हैं।
UPA2 सरकार ने ब्रिटिश सरकार को लिखित में जानकारी दी थी कि ललित के खिलाफ मामला भारत की कोर्ट में विचाराधीन है। ऐसे में उन्हें ब्रिटेन से बाहर जाने की इजाजत न दी जाए। इस बीच सरकार ने ललित मोदी का पासपोर्ट भी निरस्त कर दिया था। 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद ललित मोदी ने ट्रैवल डॉक्यूमेंट हासिल करने के लिए फिर से हाथ-पैर मारने शुरू किए


ललित मोदी कथित तौर पर वर्तमान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से भी मिले। स्वराज परिवार से ललित मोदी का सालों पुराना रिश्ता है। यह बात उसने इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में स्वीकार की। अगस्त 2014 में ललित मोदी ने भारतीय विदेश मंत्रालय से मदद मांगी ताकि ब्रिटिश सरकार उसे ट्रैवल डॉक्यूमेंट दिलवाए। उनकी दलील थी कि पत्नी मीनल मोदी का पुर्तगाल के अस्पताल में इलाज चल रहा है, जहाँ ऑपरेशन के लिए पति होने के नाते उनका मौजूद होना और हस्ताक्षर करना जरूरी है। हालांकि, कानूनन ऐसी कोई बाध्यता नहीं थी।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पहले ब्रिटिश हाई कमिश्नर से बात की और फिर ब्रिटिश सांसद कीथ वाश से बात करके उन्हें पत्र भेजा। तब जाकर ललित मोदी को ट्रैवल डॉक्यूमेंट मिल सका।

गौर करने वाली बात यह भी है कि यूएन के भ्रष्टाचार विरोधी कानून, 2002 पर भारत ने भी हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत पद का दुरुपयोग कर किसी व्यक्ति की मदद करना/फायदा पहुंचाना भी भ्रष्टाचार कहलाएगा। बावजूद इसके FEMA कानून, कंपनी लॉ, आयकर कानून के अंतर्गत अपराधी पाए गए एक भगोड़े की मदद की गई।
यहां कई सवाल खड़े होते हैं क्या सुषमा स्वराज ने निजी सम्बन्धों के चलते मोदी की मदद की? विदेश मंत्री के इस कदम की जानकारी प्रधानमंत्री को थी? आखिर ऐसी क्या मज़बूरी थी कि कानून से भाग रहे व्यक्ति की इस तरह मदद करनी पड़ी? पूर्व सरकार द्वारा दूसरे देश से लिखित में किए गए ऐसे संवेदनशील संवाद के बाद भी क्या यह कदम उठाना उचित था?

जब इस विषय पर जानकारियां एकत्र कर रहा था, तभी एक और जानकारी मिली कि अपनी पत्नी के ऑपरेशन के 3 दिन बाद ललित मोदी स्पेन के एब्ज़ा में अपनी पत्नी मीनल के साथ जश्न मने रहे थे। तो ऐसी कौन सी बीमारी थी, जिसके कारण उनका पुर्तगाल जाना ज़रूरी था और महज 3 दिनों के अंदर ऑपरेशन भी हो गया और पत्नी जश्न मनाने की स्थिति में भी आ गई? अगर वक्त मिले तो इंस्टाग्राम पर ललित मोदी की पोस्ट की हुई तस्वीरें देखिए। आप को खुद अंदाजा लग जाएगा कि ललित ट्रैवल डॉक्यूमेंट का कितना शानदार सदुपयोग कर रहे हैं।

हालांकि, इस मामले में गलती केवल विदेश मंत्री की ही है, यह कहना सही नहीं होगा। हो सकता है कि  इसके अंदर कुछ अलग ही राजनीति छिपी हो, जिसमें सुषमा स्वराज केवल एक मोहरा हों। इन संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। इतिहास के पन्नों को पलटें तो नरेंद्र मोदी से जिनकी पटरी नहीं बैठती, वे माहिर हैं उनके लिए ऐसी परिस्थितियां निर्मित करने में, जिसमें व्यक्ति खुद-ब-खुद रास्ते से अलग हो जाता है। इससे इन पर कोई सवाल भी नहीं उठता।

चाहे लाल कृष्णा आडवाणी हों या मुरली मनोहर जोशी या फिर विहिप नेता प्रवीण तोगड़िया, इनका कद एकाएक ऐसा कम हो जाएगा, किसी ने सोचा भी नहीं होगा। कट्टर हिंदूवादी सोच रखने वाले प्रवीण तोगड़िया गुजरात से आते हैं। उनकी मोदी से कुछ ख़ास पटरी बैठती न थी।  मोदी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तो उन्होंने तोगड़िया को विहिप का अंतरराष्ट्रीय प्रमुख बनवा दिया, जिससे वे देश में कम (खासकर गुजरात से बाहर) और मुख्यतः विदेशों में ज्यादा रहे। आडवाणी और जोशी सांसद होने के नाते, सक्रिय राजनीति में हैं तो ज़रूर, पर अब तो वे शहीदों, पूर्व नेताओं की जन्मदिन-पुण्यतिथि में उनकी मूर्तियों के सामने श्रद्धांजलि देते तक दिखाई नहीं पड़ते।

ऐसा ही कुछ लोकसभा में विपक्ष की पूर्व नेता और मौजूदा विदेश मंत्री के साथ भी होता दिखाई पड़ रहा है। 2009-14 तक संसद में विपक्ष की अगुवाई करने वालीं सुषमा अपनी दमदार छवि की वजह से प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में शामिल थीं उन्होंने मोदी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर कुछ नाराज़गी भी ज़ाहिर की थी, पर बाद में एक समझदार नेत्री की तरह पार्टी और मोदी, दोनों का समर्थन किया।

पीएम मोदी ने जब इन्हें विदेश मंत्रालय का प्रभार सौंपा, तभी सवाल उठ रहे थे कि क्या यह सुषमा को विदेश मंत्रालय की आड़ में कांटों भरा ताज पहनाया जा रहा है? रातनीतिज्ञ पंडितों ने तो तभी कयास लगा डाले थे कि बस कहीं कुछ ऊंच-नीच हुई और सुषमा को भी बाकी वरिष्ठ नेताओं की तरह गुम होने में वक्त नहीं लगेगा। क्या ललित मोदी विवाद भी उसी का हिस्सा है? राजनीतिक दलों में अंदरूनी गुटबाजियां आम हो चली हैं। बीजेपी भी इससे अछूती नहीं है। तो क्या यह सुषमा के आडवाणी गुट से जुड़े रहने का परिणाम है? अब देखना रोचक होगा कि क्या सुषमा स्वराज का नाम भी मार्गदर्शकों आडवाणी, जोशी की तरह गुमनाम दर्शक होने की राह पर है?