रविवार, 13 दिसंबर 2015

“चार दिन की चांदनी फिर अंधियारी रात”

हमारे छत्तीसगढ़ राज्य के सरकारी महकमे को इस वाक्य को अपने प्रचार वाक्य के रूप में ग्रहण कर लेना चाहिए, क्यूंकि यहाँ जो भी निर्णय होते हैं उनकी वैद्यता 4 दिन से ज्यादा की नहीं रहती. उदाहरण स्वरुप दुपहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट अनिवार्यता का नियम. पुलिस मुख्यालय ने एक बार फिर दुपहिया वाहन चालकों द्वारा हेलमेट नहीं लगाने पर कार्यवाही करने के आदेश/निर्देश दिए हैं. इस प्रकार की मुहीम पहले बार लागू की गई है ऐसा नहीं है इसके पहले भी पचीसों बार हेलमेट अनिवार्यता के लिए मुहीम छेड़ी गई है पर किसी भी बार इसकी अवधि 4 दिन से ज्यादा की नहीं रहती. कारण, बिना सोचे समझे लिए गए निर्णय.
रायपुर जैसे शहर में जहाँ पुरानी बस्ती, रामसागरपारा, MG रोड, मालवीया रोड, गुढ़ियारी, स्टेशन रोड, सादर बाजार, गोल बाजार, जैसे इलाके हैं. इन इलाकों के सड़कों की चौड़ाई महज़ 40-50 फ़ीट होगी, जिनमें चाह कर भी इंसान 30 की.मी. प्रति घंटे से ज्यादा की गति में वाहन चला नहीं सकता वहां हेलमेट पहन कर गाड़ी चलाने कहना क्या समझदारी है? यहाँ से आप किसी भी पहर में गुज़रिये बिना जाम में फंसे इन रास्तों से निकल पाना असंभव है. इस प्रकार के आदेश थोपने वाले अधिकारियों से मेरा आग्रह है कि जिन मार्गों का मैंने ज़िक्र किया है उन मार्गों पर कुछ दिन हेलमेट के साथ और कुछ दिन बिना हेलमेट के दुपहिया चलाते हुए निकलें शायद तब जा कर उनको ये बातें समझ आएंगी जिस तरफ मैं उनका ध्यान आकर्षित करना चाह रहा हूँ. निःसंदेह हेलमेट सुरक्षा की दृष्टी से अनिवार्य होना चाहिए पर शहर के बाहरी इलाकों में ना की शहर के तंग सड़कों के लिए. सड़क किनारे अवैध रूप से गुमटियां लगाने वाले, ठेला लगाने वाले, दूकान के बहार अवैध रूप से सामान बिछाने वालों पर कार्यवाही करना छोड़ इस प्रकार के बेतुके निर्देश निकालने में कोई समझदारी नहीं है. 
ज़रूरत है पहले आवागमन के मार्गों से इन अवैध कब्जाधारियों को हटाने की, तब जाकर मार्ग वाहन चलाने योग्य बनेंगे और अगर फिर हेलमेट अनिवार्य किया जाए तो निर्देशों का पालन भी होगा.  अन्यथा 4 दिन पुलिस चौक-चौराहों पर नज़र आएगी तब तक लोग गली-मोहल्लों से गुज़रते हुए बच निकलेंगे और 4 दिन बाद जैसे थे की स्थिति फिर लौट आएगी.

शहर के भीतर अगर सड़क हादसे होते हैं तो उनकी मुख्य वजह पालकों द्वारा 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को गाड़ी थमा देना, ऑटो चालकों पर नियंत्रण न होना, अव्यवस्थित ट्रैफिक व्यवस्था है. स्कूली बच्चों को गाड़ी न चलाने के निर्देश देना, जागरूक करने की मुहीम चलाना भी केवल साल में एक बार जून-जुलाई के महीने में किया जाता है. गौरतलब है की इस मुहीम की भी अवधि मात्र 4 दिनों की ही होती है. वैसे  स्कूली बच्चों को गाड़ी न देने, सड़क हादसों के प्रति जागरूकता फ़ैलाने में जितनी जिम्मेदारी पुलिस की है उतनी ही जिम्मेदारी पालकों की भी है.
केवल हेलमेट अनिवार्यता ही नहीं आप पिछले अन्य आदेशों को उठा कर देख लीजिये, किसी भी आदेश/मुहीम की अवधि 4 दिन से ज्यादा की नहीं रही है. उदाहरण स्वरुप राजधानी रायपुर के गुढ़यारी स्थित व्यापारियों के व्यवस्थापन का ही मुद्दा ले लीजिये. गुढ़यारी का बाजार राज्य का सबसे बड़ा तेल, अनाज का थोक बाजार है और यहाँ के व्यापारियों को डुमरतराई में व्यवस्थापन हेतु सरकार द्वारा दुकान आबंटित कर दिए गए हैं पर 90% व्यापारी अभी भी गुढ़यारी से ही अपना कारोबार चला रहे हैं और प्रशासन इन कारोबारियों को व्यवस्थापित करने में पूर्ण रूप से असमर्थ है. 2 माह पूर्व इन कारोबारियों को व्यवस्थापित करने मुहीम चलाने का निर्णय लिया गया और अन्य मुहिमों की तरह इस मुहीम ने भी 4 दिन बाद घुटने टेक दिए.
इसी प्रकार रायपुर के नया बस स्टैंड स्थित सरकारी जमीन को खाली करवाने में भी अधिकारियों के पसीने छूट गए हैं. सालों से पंडरी नया बस स्टैंड में एक सरकारी जमीन पर एक निजी बस ट्रेवल्स के मालिक ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है, जिसे खाली करवाने अधिकारी कई बार अपने अमले के साथ गए हैं परन्तु हर बार उन्हें नाकामी ही हाथ आई और अभी भी वह जमीन ट्रेवल्स मालिक के कब्जे में है.

ऐसे बहुतेरे उदाहरण हैं जब आदेश/निर्देश दिए गए पर परिणाम कुछ ना निकला, इसलिए छत्तीसगढ़ के सरकारी महकमे को अपने कार्यशैली की समीक्षा करने की आवश्यकता है. उन्हें बैठ कर विचार करने की ज़रूरत है कि आखिर किसलिए उनके किसी भी मुहीम का कोई सार्थक परिणाम नहीं आता.

हर्ष दुबे
भूतपूर्व छात्र, भारतीय जनसंचार संस्थान,
नई दिल्ली