गुरुवार, 5 मई 2016

मानवता पर भारी पड़ता मनोरंजन !

क्या ऐसी किसी सरकार का नाम ले सकते हैं जो खुद को गरीबों की सरकार, किसानों की सरकार न कहती हो? ऐसी कोई चुनावी सभा बता सकते हैं जिसमें किसानों के हित की बात न की गई हो? चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार सभी खुद को किसानों का हितैषी ही बताते हैं. अगर वाकई में ऐसा है तब फिर क्यों हमारे अन्नदाताओं की स्थिति बद से बत्तर होती जा रही है? सच तो यह है की 60 करोड़ किसान केवल चुनावी हित साधने के एक माध्यम हैं, जिन्हें राजनीतिक दल न्यूनतम समर्थन मूल्य, बोनस, सिंचाई परियोजनाएं रुपी झुनझुना दिखाते हैं और अपना स्वार्थ साधते हैं. किसानों की हालत सुधारने पिछेल 7 दशकों में सैकड़ों कमिटियां गठित की जा चुकी हैं, सैकड़ों रिपोर्ट पेश किये जा चुके हैं, पर अपेक्षित परिणाम हासिल करने की आस अभी भी बनी हुई है. मौजूदा हालात यह है कि आज भी हम सिंचाई हेतु पूर्ण रूप से इंद्र देव पर निर्भर हैं.

एक तरफ पिछले २ वर्षों में औसत से कम वर्ष हुई है, देश के लगभग एक तिहाई गाँव सूखे कि चपेट में हैं, खेतों में देने के लिए पानी नहीं है वहीँ दूसरी ओर आईपीएल हेतु मैदान को हरा रखने, पानी बहाने में कोई कमी नहीं कि जा रही है. आईपीएल कराने की जिम्मेदारी आईपीएल संचालक समिति की है जो BCCI के अंतर्गत आती है, जिसका मुख्यालय मुंबई में है जो महाराष्ट्र कि राजधानी है और महाराष्ट्र ही सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य भी है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक याचिका कि सुनवाई करते हुए 30 अप्रैल 2016 के बाद होने वाले मैचों को राज्य से बाहर स्थानांतरित करने को कहा है.
हम इतने असंवेदनशील क्यों हो गए हैं कि पैसों के आगे न हमें सूखे से फटी ज़मीन दिखाई पड़ती है और न ही अपनी खेत के पेड़ में लटका किसान. हमारी मानवता क्या मर चुकी है? पानी की बर्बादी को रोकने किसी व्यक्ति/संगठन को कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की नौबत ही क्यों आई? बर्बादी इसलिए कहूंगा क्योंकि किसी के जान से ज्यादा महत्वपूर्ण मनोरंजन कभी नहीं हो सकता. BCCI जो विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है, जिसकी कार्यकारणी में तमाम राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेता शुमार हैं, क्या वह चाहता तो इस संवेदनशील मुद्दे पर खुद निर्णय लेकर एक सकरात्मक सन्देश नहीं दे सकता था? खिलाड़ियों की सुरक्षा के मद्देनज़र जब 2009 में आईपीएल दक्षिण अफ्रीका स्थानांतरित किया जा सकता है तो क्या का सालाना 5500 करोड़ कमाने वाला बोर्ड एक साल के लिए फिर कोई दूसरा देश नहीं तलाश सकता था?
वैसे बताना चाहूंगा कि BCCI एक स्वायत्त संस्था है, जो अपने पंजीयन के हिसाब से एक चैरिटेबल ट्रस्ट है और उच्च न्यायालय के निर्णय की मानें तो हर संस्था चाहे सरकारी हो या निजी या स्वायत्त सभी को अपनी कमाई का 2% हिस्सा CSR (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) के रूप में समाज को देना अनिवार्य है, अगर निर्णय का ही सम्मान सही रूप से किया जाए तो भी कितने ही किसानों को मदद मिल सकती है, पर जब सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं तो नियम का पालन करे कौन! कुल मिलाकर बात इतनी ही है कि आईपीएल मोटी कमाई का एक ऐसा धंधा बन चुका है कि सरकार कोई भी हो इसके खिलाफ आवाज़ कोई नहीं उठाना चाहता. चाहे खिलाड़ी हो या टीम मालिक, नेता हो या अधिकारी जेबें सबकी गरम हो रही हैं तो भला  क्यों कोई आवाज़ उठाए. रही बात आपकी-हमारी तो यहाँ बैठ कर गरियाने के अलावा हम भी कर भी क्या सकते हैं.
जय जवान, जय किसान...
हर्ष दुबे
भूतपूर्व छात्र, भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली.