शनिवार, 21 जुलाई 2018

भारतीय राजनीति और प्रभु राम का अटूट सम्बन्ध।


क्या आपको पता है भारतीय राजनीति का केंद्र बिन्दु क्या है? कौन हैं जिनके इर्द-गिर्द भारतीय राजनीति घूमती है? कौन हैं जो सत्ता दिलाते हैं या सत्ता छीनते हैं?
अरे भाई लोकतंत्र, वोटर, मोदी, शाह, गांधी, नेहरू इनमें से कोई नहीं हैं, बल्कि स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम हैं। 'कौन' का जवाब तो मिल गया अब 'क्या' की ओर चलते हैं, तो ये जान लीजिए कि केन्द्र दिल्ली नहीं बल्कि अयोध्या है।
प्रभु श्रीराम ही हैं जिनके हाथों में भारतीय राजनीति की सत्ता की चाबी है, जिसे वे जब मर्ज़ी जिसके हाथों में थमाना चाहें थमा दिया करते हैं। और अगर आप इसे नकार कर सत्ता पाने को वोटर, लोकतंत्र, जनतंत्र की शक्ति सोच रहे हैं तो ये जानना आपके लिए बेहद जरूरी है कि ये सारी चीज़ें भाषण, बहस, लेखों तक सीमित है उससे ज्यादा कुछ नहीं।

ऊपर कही गई बात उतनी ही ज़रूरी और सच है जितनी टीवी में सुनाई देने वाली लाइन "म्युचुअल फंड्स आर सब्जेक्ट टू मार्केट रिस्क, प्लीज़ रीड द स्टेटमेंट बिफोर इंवेस्टिंग" वाली है।

वैसे तो हम हों या आप, हमारी डोर तो ईश्वर के हाथ में ही है परन्तु भारतीय राजनीति की डोर पर प्रभु राम का एकाधिकार है। हालांकि राजनीति में उनकी एंट्री ज्यादा नहीं 3 दशक पुरानी ही है, पर एक देश, एक समाज के चलने चलाने वाले मुद्दों से प्रभु राम कोसों आगे हैं। मुद्दों की आपसी होड़ में प्रभु राम के अनुयायियों ने स्वयं उन्हें एक मुद्दा बना दिया है और अर्थव्यवस्था, रक्षा, शिक्षा, महंगाई, डिप्लोमेसी जैसे मुद्दे आज भारतीय राजनीति में वेन्टीलेटर पर पहुँच चुके हैं।
बस कुछ ही दिनों की बात है एक बार प्रभु अपनी जन्मस्थली अयोध्या में विराजमान हो जाएं फिर हमारे देश, हमारे समाज को विश्व पटल पर सर्वशक्तिमान का दर्जा पाने से कोई नहीं रोक सकता।
पुतिन, ट्रम्प, नेतन्याहू जैसे लोग उस मंदिर के बाहर फूल-माला की दुकानें लगाया करेंगे और जिपिंग, किम-जोंग श्रद्धालुओं के जूते-चप्पल की रखवाली करने मजबूर हो जाएंगे।
यह सब तभी सम्भव है जब प्रभु अयोध्या में विराजेंगे जो कि अभी टेम्पररिली सर्वोच्च न्यायालय के कोर्ट रूम में, फाइलों में रह कर सत्ता संचालन कर रहे हैं । जबकि वास्तविकता यह है कि, एक जगह बताइये जहाँ श्री राम नहीं हैं, वह तो सर्वव्याप्त हैं। (यह तो धर्म और राजनीति के स्वयम्भू ठेकेदारों का किया धराया है कि, उन्होंने प्रभु राम तक को नहीं छोड़ा और उन्हें भी एक मुद्दा बना डाला।) देश को सर्वशक्तिमान बनाने के लिए प्रभु के लिए एक पर्मानेंट ठीहा होना अत्यावश्यक है, तभी ऊपर कही गई बातें सत्य हो पाएंगी।
पर सवाल यह उठता है कि रामजी के लिए पर्मानेंट ठीहा की व्यवस्था करेगा कौन? मौजूदा समय में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी या देश की सबसे प्राचीन पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस? और जब करना इन्हीं में से किसी को है और सत्ता पर काबिज भी यही दो दल ही रहे हैं तो अभी तक ठीहा तैयार क्यों नहीं हुआ?
 एक दल ने अपनी नींव ही प्रभु राम के लिए मंदिर निर्माण होना चहिए के रूप में यात्रा निकाल कर रखी और समय के साथ स्वयं प्रभु राम को ही एक मुद्दा बना डाला । तो दूसरी ओर राजीव गांधी सरकार ने ताला तोड़वाया और पूजा-अर्चना आरम्भ करवाई। आप इसी से भारतीय राजनीति में प्रभु राम की पकड़ का अंदाजा लगा सकते हैं। पर सवाल फिर वही है, कि मंदिर बनाएगा कौन? मंदिर बन गया तो नया मुद्दा लाएगा कौन? मंदिर में विराजते ही प्रभु राम राजनिती में एक्टिव रहेंगे या मार्गदर्शक की भूमिका में आ जाएंगे?
सवाल बहुतेरे हैं, पर जवाब किसी के पास नहीं। शायद प्रभु राम ही इसका जवाब दे पाएंगे। पर कब?

तो इंतज़ार करिये 2019 आमचुनाव का, प्रभु राम के जवाब का, ट्रम्प, पुतिन, नेतन्याहू के फूल-माला की दुकान और किम-जोंग के चप्पल रखवाली करने का। क्योंकि मंदिर निर्माण होते ही हम-आप सर्वशक्तिशाली होने वाले हैं।

जो माने उसको जय श्री राम, जो ना माने जय जय श्री राम...